वीर पसली व्रत का महत्व और कथा

Veer Pasli 2023 Date, Tithi Vrat Katha | वीर पसली व्रत का महत्व और कथा

वीर पसली (Veer Pasli) त्योहार खासकर भारत के गुजरात राज्य में मनाया जाता है। जो सावन मास के दौरान मनाया जाता है यह सावन मास के पहले रविवार को मनाया जाएगा।

कुछ लोग की यह मान्यता है की यह सावन मास के पहले या दूसरे शनिवार को मनाया जाता है। रीति रिवाजो के अनुसार रक्षाबंधन या राखी जैसा मनाया जाता है।

हालांकि यह त्यौहार इतना व्यापक नहीं है पर कुछ समुदाय द्वारा सख्त नियमों का पालन कर मनाया जाता है।

वीर पसली त्योहार का महत्व

जैसे कि बताया गया है यह त्योहार रक्षाबंधन के जैसा मनाया जाता है , वैसे ही कुछ वीर पसली भी मनाई जाती है , इस दिन बहन अपने भाई के हाथों की कलाई में पवित्र धागा बांधती है और भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वादा करता है। साथ ही अगर बहन विवाहित हो तो भाई अपनी बहन के घर जाता है और अनुष्ठान रूप यह त्यौहार मनाया जाता है।

संक्षेप में कहा जाये तो यह त्यौहार रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) या भाईदूज (Bhai Dooj) की तरह ही महत्वपूर्ण होता है जो गुजरात में हर्षोल्लास से मनाया जाता है

कैसे मनाये ये त्यौहार ?

आठ गठनो वाला धागा ले और भाई को बंधे,और रोज आठ दिनों तक रोज सुबह शाम धुप जलाये। धुप जलने के बाद ही कुछ खाये और भाई खोबे का कुछ खिलाकर व्रत तोड़े तो शुभ मन जाता है। आठ दिन बाद धागे तो छोड़ कर बैरल से बांध दे।

वीर पसली 2023 कब है ?

इसे भी देखें – Raksha Bandhan 2023 Date, Tithi, and, Muhurat

वीर पसली 2023 में 20 अगस्त को है , कुछ समुदाय के अनुसार यह 19 अगस्त को मनाया जाएगा (जो सावन मास के पहले शनिवार को मानते हैं ) या 26 अगस्त को।
सावन मास में गुजरात में यह 18 जुलाई से 15 सितम्बर तक है।
2023 में एक अतिरिक्त श्रावण मास है और यह 18 जुलाई से 16 अगस्त 2023 तक है।

ध्यान दे वीर पसली की तिथि को लेकर भ्रम है कुछ लोग दावा करते हैं की यह सावन मास के पहले रविवार को मनाया जायेगा। कुछ लोग की यह मान्यता है की यह सावन मास के पहले या दूसरे शनिवार को मनाया जाता है।

Veer Pasli Vrat Katha

एक गांव में एक किसान निवास करता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री शीला थी। सभी सातों भाइयों और बहनों की शादियाँ हो चुकी थीं। छोटे भाई निष्कलंक और सदय हुआ था, वहीं बड़े छह भाई अपने वचनों का पालन नहीं करते थे। उन्होंने अपने छोटे भाई को अलग कर दिया। शीला अपने छोटे भाई के साथ गरीबी में रह रही थी, जिसकी वजह से वह कंकस हो चुका था।

बड़े भाइयों ने धोखा देकर धन कमाया, जबकि छोटे भाई मेहनती तरीके से काम कर अपना जीवन गुजार रहा था। इसके बावजूद, शीला अपने छोटे भाई की मदद करने के लिए उनके बड़े भाइयों के पास जाती है। उनकी भाभियों ने उन्हें घर के काम करने के लिए भेज दिया जैसे कि मवेशी चराने का काम। उनका मानना था कि उनके पास काम नहीं है, इसलिए वे उन्हें गौ-माता के साथ काम करने की सलाह देते हैं। शाम के समय, वे उनके पास जाती और जितना कुछ भी मिलता है, वह खा लेती।

एक दिन, जब वह मवेशी चराती हुई जा रही थी, वह देखती है कि कुछ लड़कियाँ व्रत लेती हुई जा रही हैं। वह उनसे पूछती है कि व्रत का मतलब क्या है? एक लड़की उत्तर देती है कि आज वीर पसली व्रत है और हमने वीर पसली धागे बाँधे हैं। हम इस धागे को अपने भाई के दाहिने हाथ में बांधने और उतना अनाज पकाकर खाएंगे कि भाई का पेट भर जाए।

शीला यह सुनकर पूछती है कि इससे क्या लाभ होगा? तो लड़कियाँ कहती हैं कि इससे उनके भाई का पूरा साल सुख-शांति से बीतता है। शीला को यह सुनकर बड़ी उत्सुकता होती है और उसने भी एक धागा लिया और धन्यवाद दिया। उसने उस धागे को आठ दिन तक जलाया। आठवें दिन, वह अपने भाइयों के पास गई और धागे को बांधने की कथा सुनाई। लेकिन उनकी भाभियों ने धागे को छोड़ दिया और उन्हें बाहर निकाल दिया।

शीला उदास होकर वापस घर आती है लेकिन वह अपने छोटे भाई के पास जाकर उसको बांधती है। उनके छोटे भाई के पास ननद के लिए एक मुद्रा और मिट्टी के गोले होते हैं जिन्हें वह भाभियों के साथ बाँधने के लिए लेती हैं। उनके छोटे भाई ने उन्हें अपनी बहन की सेवा करने का महत्व सिखाया और उसके साथ रहने लगे।

इसी समय, उनके बड़े भाइयों के गांव में अकाल पड़ गया और वह काम की तलाश में निकल पड़े। वह भाइयों और उनकी पत्नियों को बगीचे में काम करने के लिए लगा दिया, जबकि शीला ने छोटे भाई, भाभियों और माता-पिता की देखभाल की।

एक दिन, शीला ने सभी भाइयों को खाने पर बुलाया। उन्होंने छहों भाइयों के लिए सोने के बर्तन और भाभियों के लिए चांदी के बर्तन परोसे, जबकि छोटे भाई को उनकी देखभाल करने वाली भाभियों के लिए चूरमे के बर्तन परोसे। उनके भाइयों ने उन्हें पहचान लिया और उनसे माफी मांगी, जिससे वे अपनी गलती का अहसास करें। इसके बाद, उनके साथी सुख-शांति से बीतने लगे।

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