Roop Choudas | Choti Diwali | Narak cahturdashi

रूप चौदस महत्व

रूप चौदस महत्व

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छोटी दिवाली हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है। इस पर्व को कृष्ण पक्ष के 14वें दिन कार्तिक के विक्रम संवत में मनाया जाता है। इसे नरक चौदस, रूप चौदस, या काली चौदस भी कहा जाता है। साथ ही यह 14वें दिन आती है तो इसे चतुर्दशी भी कहा जाता है।

क्यों रूप चौदस या छोटी दिवाली को नरक चौदस भी कहा जाता है?

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ये है पौराणिक कथा –

ऐसी मान्यता है कि रति देव नामक एक धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने कोई पाप नहीं किया था, लेकिन एक दिन उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हो गए थे। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया और आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नरक जाना होगा।

यह सुनकर यमदूत ने कहा कि राजन एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है।

इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष का समय मांगा। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी।

राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें सारी कहानी सुनाकर पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।

राजा ने वैसा ही किया और पाप मुक्त हुए। इसके पश्चात उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। 

उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत और ब्राह्मणों को भोजन खिलाया जाता है।

इसीलिए इस दिन भगवान की पूजा अर्चना की जाती है और गलतियों से बचने के लिए और उनको माफ करने के लिए माफी मांगी जाती है।

नरक चतुर्दशी के मौके पर मृत्यु के देवता यमराज से अपने और अपने परिवार वालों के लिए नरक निवारण की प्रार्थना की जाती है।

रूप चौदस के महत्व को बताती है ये पौराणिक कथा –

विष्णु और श्रीमदभागवद् पुराण के अनुसार नरकासुर नामक असुर ने अपनी शक्ति से देवी-देवताओं और मानवों को उस दौरान परेशान कर रखा था। असुर ने संतों के साथ 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बना रखा था।

जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता और ऋषि-मुनियों ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आकर कहा कि इस नरकासुर का अंत करके आप पृथ्वी से पाप का भार कम कर दें। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर के अत्याचारों से उन्हें मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया।

लेकिल नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का शाप था। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाकर और सत्यभामा की सहायता से ही नरकासुर का वध किया।

जिस दिन नरकासुर का वध हुआ उस दिन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी।

श्रीकृष्ण ने उसका संहार कर 16 हजार लड़कियों को कैद से आजाद करवाया था।

तत्पश्चात उन लड़कियों को उनके माता पिता के पास जाने का निवेदन किया , जिसे उन्होनें अस्विकार कर कृष्ण से विवाह का प्रस्ताव रखा ,बाद में यही कृष्ण की सोलह हजार पत्नियां ऐवं आठ मुख्य पटरानियां मिलाकर सोलह हजार आठ रानियां कहलायी ।

नरकासुर के वध के कारण इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाते हैं । 

इस दिन श्री कृष्ण के 16 हज़ार कन्याओं से विवाह किया था, इसी खुशी में इस दिन महिलाएं 16 श्रृंगार करती है और इसलिए इसे रूप चौदस भी कहा जाता है.

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रूप चौदस | नरक चौदस की पूजा विधि – 

  1. रूप चौदस को यह महत्व ही की इस दिन सुबह सुर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल या उबटन लगाकर मालिश करने के बाद स्नान करना चाहिए. नहाने के पश्चात सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। इसके बाद भगवान कृष्ण की अराधना की जाती है। पूजा के समय फल-फूल धूप जलाकर अर्चना करें। 
  2. सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद दक्षिण मुख होकर हाथजोड़कर यमराज से प्रार्थना करना चाहिए. ऐसा करने से व्यक्ति के द्वारा किए गए वर्ष भर के पापों से व्यक्ति मुक्ति पा लेता है.
  3. नरक चतुदर्शी के दिन शाम को सभी देवाताओं की पूजा करने के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की दहलीज पर 5 या 7 दीप जलाएं।

इस दिन को कहीं कहीं ” हनुमान जयंती ” के रूप में भी मनाते हैं ।

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