कृष्ण-जन्माष्टमी-2023

कृष्ण जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण के आविर्भाव की अद्वितीय उत्सव

भारतीय संस्कृति में धार्मिक त्योहारों का महत्वपूर्ण स्थान है, और उनमें से एक महत्वपूर्ण त्योहार है ‘श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Shree Krishna Janmashtami)’।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Shree Krishna Janmashtami) का त्योहार हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। यह पर्व भारत के विभिन्न हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है

श्रीकृष्ण का जन्म हिन्दू पंचांग के अनुसार भद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्य रात्रि में तथा रोहिणीं नक्षत्र में हुआ था।

इस दिन लोग विशेष उपासना, भजन-कीर्तन, और पूजा करके भगवान के जन्म की महत्वपूर्ण गाथाओं को याद करते हैं।

यह त्योहार एक धार्मिक उत्सव के साथ-साथ एक सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजन भी होता है। रासलीला, जिसमें श्रीकृष्ण और गोपियाँ खेलते हैं, इस पर्व का महत्वपूर्ण हिस्सा है। लोग मक्खन चोरी की कहानियों को दोहराते हैं और अपने घरों में छोटे श्रीकृष्ण मूर्तियों की पूजा करते हैं।

जन्माष्टमी (Janmashtami) एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है, इस दिन, भगवान कृष्ण के भक्त उनके बाल रूप की पूजा करते हैं, जिन्हें बाल गोपाल और लड्डू गोपाल कहा जाता है। वैदिक कालक्रम के अनुसार, इस वर्ष भगवान कृष्ण का 5250वां जन्मदिन मनाया जाएगा।

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लोग मंदिरों में जाकर, व्रत रखकर, अपने घरों को सजाकर, स्वादिष्ट व्यंजन तैयार करके, भगवान कृष्ण की मूर्ति को सजाकर और बहुत कुछ करके इस दिन को मनाएंगे। पूरे देश में इस त्योहार की धूम होती है।

हालांकि, सबसे बड़े उत्सव मथुरा और वृन्दावन में होते हैं, जहाँ माना जाता है कि कृष्ण का जन्म क्रमशः हुआ था और उन्होंने अपने बड़े होने के वर्ष बिताए थे।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2023 में कब है ? Krishna Janmashtami 2023 Date

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Shree Krishna Janmashtami) का त्योहार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।

हिन्दू पौराणिक कथाओं में कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, और इसलिए इस दिन को विशेष महत्व दिया जाता है।

द्रिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष जन्माष्टमी (Janmashtami) लगातार दो दिनों तक मनाई जाएगी, क्योंकि अष्टमी तिथि 6 सितंबर को दोपहर 3:37 बजे से शुरू होगी और 7 सितंबर गुरुवार को शाम 4:14 बजे तक रहेगी।

इस वर्ष, रोहिणी नक्षत्र भी 6 सितंबर को सुबह 9:20 बजे से शुरू होकर 7 सितंबर को सुबह 10:25 बजे तक रहेगा।
इसके अलावा, दही हांडी उत्सव भी 7 सितंबर को मनाया जाएगा, जो कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त :

अष्टमी तिथि 6 सितंबर को दोपहर 3:37 बजे शुरू होगी और 7 सितंबर (शाम 4:14 बजे) को समाप्त होगी।

द्रिक पंचांग के अनुसार 7 सितंबर को जन्माष्टमी 2023, निशिता पूजा का समय रात 11:57 बजे से 12:42 बजे तक होगा।

  • इस तरह, जन्माष्टमी पर पूजा का शुभ समय रात 11:57 बजे से शुरू होगा।
  • लड्डू गोपाल का जन्मोत्सव और पूजन रात्रि 12:42 बजे तक मनाया जाएगा।
  • पारण का समय 7 सितंबर को शाम 4:14 बजे होगा।

कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व:

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कृष्ण जन्माष्टमी (Shree Krishna Janmashtami) हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसे श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है।

इस त्योहार का महत्व भगवान कृष्ण के जन्म के घटनाक्रम के साथ जुड़ा है, जो मथुरा नगर में देवकी और वासुदेव के यहाँ घटित हुआ था।

कंस नामक राक्षस राजा ने अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया था, क्योंकि एक भविष्यवाणी ने कहा था कि उसके द्वारा होने वाले बच्चे उसकी विनाशकारी मृत्यु का कारण बनेंगे।

भविष्यवाणी को पूरा करने से बचने के लिए, कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में बंदी बना दिया इतना ही नहीं उसने देवकी और वासुदेव की 7 सन्तानो को पैदा होते ही मर दिया

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म देवकी की 8वी संतान के रूप में कारागार में हुआ, किसी देवीय हस्तक्षेप से कारागार में पहरा दे रहे लोग नींद के आगोश में समां गए और वासुदेव ने कृष्ण टोकरी में ले जाकर अपने मित्र नंदबाबा और यशोदा को सौंप दिया।

भगवान कृष्ण ने बाद में मथुरा में अपने चाचा कंस को मारकर धर्म की रक्षा की और उसके आतंक से देवकी और वासुदेव को मुक्ति दिलाई।

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि | Krishna Janmashtami Puja Vidhi

  • कृष्ण जन्माष्टमी पूजा की विधि (Krishna Janmashtami Puja Vidhi) इस त्योहार के महत्वपूर्ण हिस्से को दर्शाती है, जिसमें लड्डू गोपाल का जन्म सजाने का केंद्र होता है।
  • पूजा तैयारी के लिए सुबह उठकर स्नान करें और ताजे कपड़े पहनें।
  • रात में मंदिर को साफ करने के लिए गंगाजल का उपयोग करके श्रीकृष्ण के पालने को सजाकर पूजा की तैयारी करें।
  • पूजा शुरू करने के लिए ध्यान का पालन करें और भगवान कृष्ण की मूर्ति को आदरपूर्वक पालने पर रखें।
  • पाद्य के रूप में जल अर्पित करें और फिर आचमन करें।
  • पंचामृत से भगवान के स्नान समारोह को करें, जिसमें दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल शामिल होते हैं।
  • भगवान की मूर्ति को नए कपड़ों और सामानों से सजाएं, जिसे देवता का श्रृंगार कहा जाता है।
  • भगवान को पवित्र जनेऊ अर्पित करें, फिर उन पर चंदन का लेप लगाएं।
  • मूर्ति को मुकुट, आभूषण, मोर पंख और बांसुरी से सजाएं।
  • भगवान को फूल और तुलसी के पत्ते चढ़ाएं, और अगरबत्ती और तेल का दीपक जलाएं।
  • भगवान को माखन और मिश्री का भोग लगाएं, और नारियल, सुपारी, हल्दी, पान, और कुमकुम से बना ताम्बूलम भेंट करें।
  • भगवान का सम्मान करने के लिए कुंज बिहारी की आरती गाएं और फिर परिक्रमा करें।
  • आप और आपके परिवार को सुरक्षित रखने के लिए भगवान से प्रार्थना करें।

रसलीला और कीर्तन:
कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) के अवसर पर उत्तर राज्यों में रासलीला और कीर्तन का आयोजन किया जाता है। रासलीला में भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाएं प्रस्तुत की जाती हैं, जिन्हें भक्तों के द्वारा नृत्य और गीत के साथ दर्शाया जाता है। कीर्तन में भक्त भगवान के गुण और लीलाओं की महिमा को गाने के माध्यम से व्यक्त करते हैं, जो उनकी भक्ति को और भी गहरा बनाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन क्या करें?

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  • कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) के अवसर पर भक्त उपवास का पालन करते हैं, जिसका समय रात्रि के अंधकार में समाप्त होता है, जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।
  • भक्त इस दिन को भगवान कृष्ण के नाम का जाप करने और उनकी भक्ति में समय बिताते हैं, जिससे वातावरण को धार्मिकता से भर दिया जाता है।
  • भक्ति गीतों के साथ, कृष्ण की जीवन कहानी और उनकी लीलाओं को दर्शाने वाले नाटक प्रस्तुत किए जाते हैं, जिसमें बच्चे कृष्ण और गोपियों के भेष में रास लीला का आयोजन किया जाता है।
  • माखन, जो कृष्ण के प्रिय भोजन में से एक था, कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बनाया और भगवान के पास चढ़ाया जाता है।
  • इस त्योहार के माध्यम से, भक्त भगवद गीता के अंशों का पाठ करके कृष्ण की शिक्षाओं और जीवन के अर्थ को याद रखने का प्रयास करते हैं।
  • कई लोग इस दिन राधा सहस्त्रनाम (Shree Radha Sahasranama) का पाठ भी करते है

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव के आयोजन:

कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) के दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना के साथ-साथ रात्रि में भगवान के प्रसाद से भक्तों को भोजन की व्यवस्था की जाती है। रात को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, इसलिए भक्त उस समय उनके जन्म स्थल पर ध्यान और भक्ति से बिताते हैं।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी उत्सव को अलग अलग राज्यों में मनाने के तरीके

जम्मू और कश्मीर की परंपरा:

जम्मू क्षेत्र में जन्माष्टमी को भगवान कृष्ण के उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें रास लीला का प्रदर्शन होता है। लोग पतंग उड़ाते हैं और भगवान कृष्ण की प्रतिमा की पूजा करते हैं।

ओडिशा का गोकुला अष्टमी:

ओडिशा में जन्माष्टमी को गोकुला अष्टमी के रूप में मनाया जाता है, और लोग आधी रात तक व्रत और पूजा करते हैं। उनका प्रमुख उत्सव ‘नंदा उत्सव’ होता है, जिसमें नंद और यशोदा के सम्मान में खुशी का माहौल बनता है।

गुजरात में माखन हांडी अनुष्ठान:

गुजरात में माखन हांडी अनुष्ठान प्रचलित होता है, जिसमें लोग भगवान कृष्ण के प्रिय भोजन माखन का बर्तन फोड़ते हैं। इस दिन भजन गाने जाते हैं और कृष्ण के मंदिरों में जाकर पूजा करते हैं।

महाराष्ट्र में दही हांडी उत्सव:

महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के बाद का दिन ‘दही हांडी’ उत्सव के रूप में मनाया जाता है। लोग दही हांडी को फोड़ते हैं, जिसमें दही का बर्तन होता है।

दक्षिण भारत में कोलम कला:

दक्षिण भारत में कृष्ण जन्माष्टमी को गोकुला अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यहां लोग कोलम कला का उपयोग करके अपने घर को सजाते हैं और भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं।

सांस्कृतिक धरोहर:

कृष्ण जन्माष्टमी भारतीय संस्कृति और धार्मिकता की महत्वपूर्ण धारोहरों में से एक है। यह उत्सव हमें भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और उनके संदेशों के प्रति आदर्श और भक्ति अर्थी सिखाता है।

समापन:

कृष्ण जन्माष्टमी (Shree Krishna Janmashtami) एक उत्सव है जो भगवान के प्रेम, अनुराग, और दिव्यता की महिमा को मनाता है। यह उत्सव भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति को और भी अधिक मजबूती देने का अवसर प्रदान करता है, जिससे हम अच्छे और उद्यमी जीवन की दिशा में बढ़ सकते हैं।

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