बछवारस

Bach Baras 2023: जानिए कब और क्यों की जाती है बछ दुआ दसी की पूजा

हिन्दू धर्म के अनुसार, वेदों में वत्स द्वादशी या बछबारस (Bacch Dua Bach Baras) को एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह उत्सव श्रीकृष्ण भगवान के बचपन के रूप को स्मरण करता है और उनकी पूजा-अर्चना का अवसर प्रदान करता है।

वत्सपूजा (Bach Dua) का मतलब होता है ‘बछड़ा पूजन’ जिससे यह स्पष्ट होता है कि बच्चों के प्रति प्रेम और कारुण्य कितना महत्वपूर्ण है।

“बछवारस (Bach Baras)” एक विशेष अनुष्ठान है जिसका उत्तर भारत में मनाना प्रचलित है। यह अनुष्ठान भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के 12वें दिन मनाया जाता है। इस दिन बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए यह परंपरिक उपवास मनाया जाता है।

बछ बारस (Bach Baras) के दिन बाजरे के आहार से बने भोजन की विशेष महत्वपूर्णता होती है। इस दिन गाय (गौ माता) और उसके बछड़े की पूजा विशेष धार्मिक आदिष्टताओं के साथ की जाती है। उपवास करने वाली माताएं इस दिन केवल बाजरे के आहार का पालन करती हैं, जो उनके शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए शुभ होता है।और साथ ही गरीबो को बाजरे के बने भोजन का दान भी करती है।

बछबारस को इस नाम से भी जाना जाता है: औगद्वादस (Bach Baras / Ogdwadash)

बछवारस के दिन विशेष ध्यान रखे की चाकू से काटी गई वस्तुएं, जैसे कि गेहूँ, जौ, और गाय के दूध से बनी चीजें, का सेवन वर्जित है। इसके आगे, बछ बारस (Bachbaras) के दिन की पूर्व रात्रि में ही मूंग, मोठ, चने, और बाजरा को भिगोकर रख दिया जाता है, जिसे ‘भिजोना’ कहा जाता है। यह परंपरा इस अनुष्ठान की विशेषता को दर्शाती है और इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इसे भी पढ़े :-Krishana Ashtakam

बछबारस 2023 (वत्स द्वादशी) में कब है ? bacch dua fast 2023 date

इस वर्ष , यह अनुष्ठान भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के 12वें दिन, जिसमें बछ बारस 2023 (Bach Baras 2023) की 11 सितंबर सोमवार, को आता है, को मनाया जाता है।

द्वादशी तिथि प्रारंभ: 10 सितंबर 2023 अपराह्न 09:28 बजे
द्वादशी तिथि समाप्ति: 11 सितंबर 2023 पूर्वाह्न 11:52 बजे

बछ बारस (वत्स द्वादशी) (Bach Baras) क्यों मनाते हैं?

इसका कारण विशेष प्राम्भिक संस्कृति में आवश्यकता से उत्पन्न होता है। भगवान श्री कृष्ण, जिन्हें हम आराध्य करते हैं, उनका गौ-संबंधित विशेष स्नेह जाना जाता है।

उन्होंने गौ-सेवा के महत्व की महत्वपूर्णता को लोगों के सामने प्रस्तुत किया और गाय को माता के रूप में सम्मान दिलाया। श्री कृष्ण खुद भी गौओं की सेवा करते थे, और उनके इस आदर्श को देखकर कामधेनू ने बहुला गाय के रूप में उनकी गौशाला में स्थान पाया था।

श्री कृष्ण का एक उपनाम ‘गोपाल’ भी है, और इसी दिन पहली बार उन्होंने गायों और बछड़ों को चराने के लिए जाना था।

माता यशोदा ने उन्हें बड़ी धूमधाम से सजाकर गाय चराने के लिए भेजा था, और इस क्रिया के साथ ही उनके बड़े भाई बलराम भी थे।

इस खास मोमेंट में, भगवान श्री कृष्ण ने गायों और उनके बछड़ों को सहारा दिया था। इसी कारण, लोग इस दिन गौ-पूजा करके भगवान श्री कृष्ण की गौ-सेवा के संदेश को समर्पित करते हैं और इसे एक पर्व के रूप में मनाते हैं।

वत्स द्वादशी का महत्व | Significance of Bach Dua Dasi or BachhBaras

Desi cow Gau

वत्स द्वादशी (Bach Dua) को ‘बछवारस (Bach Baras)’ के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें ‘बछड़े’ या बच्चों की पूजा की जाती है। इस दिन बच्चों को खास देखभाल और प्यार किया जाता है। वृद्धि, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए विशेष आराधना की जाती है और उनकी आशीर्वाद की प्राप्ति की जाती है।

बछ बारस की पूजा कैसे करें? | Bachbaras Puja Ki Vidhi

बछबारस (Bach Baras) की पूजा विधि निम्नलिखित रूप से होती है:

  • पूजा की तैयारियाँ: व्रत करने वाली स्त्री को सुबह नित्य क्रियाएँ सम्पन्न करके स्वच्छ वस्त्र पहननी चाहिए।
  • गौमाता की पूजा: अगर आपके पास बछड़े वाली गाय है, तो उसे स्नान कराकर साफ और नए वस्त्र पहनाएं। उसके साथ हल्दी-चंदन से तिलक करें और फूलों की माला पहनाएं।
  • पूजा की सामग्री: एक तांबे के बर्तन में पानी डालें और उसमें तिल, अक्षत, इत्र, और फूल डालकर गौमाता के शरीर पर छिड़कें। मन्त्र पठन के बाद, गाय के खुर पर जल डालें।
  • यह करते समय निम्नलिखित मंत्र का पाठ करें –
  • क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते। सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
  • गाय माता के खुर पर लगी मिट्टी से अपने मस्तक पर टीका लगायें।
  • आरती: दीपक जलाएं और गौमाता की आरती उतारें।
  • व्रत कथा: बछबारस की कथा कहें या सुनें, जो इस व्रत की महत्वपूर्ण बातों को समझाती है।
  • व्रत का पूरा दिन: व्रत के दिन आपको गेहूँ, जौ, और गाय के दूध से बनी चीजें नहीं खानी चाहिए। साथ ही, चाकू से किसी भी चीज को काटने या काटने की प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहिए।
  • भोजन: व्रत के दिन शाम को व्रती ने अपने ईष्ट देवता की पूजा करके भोजन करना चाहिए। इसमें गेहूँ, जौ और गाय के दूध से बनी वस्तुएं शामिल नहीं होनी चाहिए।
  • दान: बछबारस के व्रती अपनी सास या जेठानी के पास भिजोना (भीगे अनाज) का पैसा देते हैं, जिससे वे उनकी आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
  • व्रत समापन: व्रत के दिन के बाद अपने ईष्ट देवता का ध्यान करके व्रत समाप्त करें।

इसे भी पढ़े :- Shri Radha Sahastranam Strotam

यदि आपके पास बछड़े वाली गाय नहीं है, तो आप आस-पास की किसी गौशाला में इसी विधि से पूजा कर सकते हैं और उनकी सेवा कर सकते हैं।

बछ बारस व्रत कथा | Bachbaras Vrat Katha

बछ बारस (Bach Baras) की दो बहुत ही प्रचलित कथायें हैं।

बछ बारस की पहली कहानी:

प्राचीन समय की बात है, एक गाँव में एक सास और बहू रहती थी। सास बहुत ही धार्मिक थी और उनके दैनिक जीवन में मंदिर जाना, पूजा-पाठ, और गौ सेवा का महत्वपूर्ण स्थान था। बहू भी सास की आज्ञाओं का सम्मान करती थी और उनके दिए गए कार्यों को ईमानदारी से सम्पादित करती थी। गाय और उसके बछड़े के प्रति भी उनका गहरा स्नेह था, और उन्होंने उनकी देखभाल बड़े प्यार से की। गाय खुद भी समझदार थी, रोज़ाना चरने के लिए छोड़ने पर भी शाम को स्वयं ही घर वापस आ जाती थी।

एक बार सास ने घर में जौ की बालियाँ रखी, लेकिन उन्होंने बहू को इसके बारे में नहीं बताया। सास ने जैसे ही सुबह उठकर अपने दिनचर्या में व्यस्त होने के लिए तैयारी की, उसने गाय को चरने के लिए छोड दिया। जाते समय उसने बहू को बिना किसी सवाल के जौ की बालियाँ उबालने के लिए रखने की आदेश दी। बहू ने बिना किसी विचार के उसकी आदेश का पालन किया और बछड़े को काटकर उबालने के लिए रख दिया। लेकिन उसके कार्य के बाद उसका दिल बहुत दुखी हो रहा था, और उसने अपनी गलती की पछ्तावा करने लगी।

सास शाम को वापस आकर देखकर घर के हालात देखकर हैरान रह गई। घर में खून के छिपकर धब्बे थे और वहाँ विचार करते ही उसका मन बहुत बेचैन हो गया। उसने बहू को बुलाया और उससे यह पूछा कि ये खून कैसे हुआ? बहू ने सच्चाई बताई और उसकी आदेश के अनुसार उस बछड़े को काटकर उबालने के लिए रख दिया था। सास की आंखों में आंसू आ गए और वह बहू के पास गई। बहू भी अपनी गलती के लिए पछ्ताई और सास की माफी मांगी। सास ने उसे समझाया कि उसकी आदेश को गलती से मिसजुदा करके ही यह सब हुआ है, और उन्होंने बहू से क्षमा मांगी। फिर उन्होंने गाय और उसके बछड़े की सेवा की और उन्हें पूजा की।

दूसरी कहानी:

प्राचीन काल में सुवर्णपुर नामक नगर में देवदानी नामक राजा शासन करते थे। वह बहुत ही न्यायप्रिय और उदार राजा थे। वह अपने राज्यवासियों के प्रति बहुत सजग थे और उनकी समस्याओं का निराकरण करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।

एक दिन, एक गरीब आदमी ने राजा के दरबार में आकर अपनी शिकायत पेश की। उसकी शिकायत थी कि उसके पड़ोसी ने उसकी जमीन पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है और उसको बिना किसी मुआवजे के निकाल दिया है। राजा ने उसकी सुनी और तुरंत अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि वे इस मामले की जाँच करके न्याय करें। बाद में पता चला कि आरोप सही था और उस गरीब आदमी की जमीन अवैध रूप से जब्त की गई थी।

राजा ने तुरंत आदेश दिया कि उस आदमी की जमीन को उसको वापस किया जाए और उसके पड़ोसी को सजा दी जाए। इससे गरीब आदमी की आत्मा को बड़ी राहत मिली और उसका विश्वास मजबूत हुआ कि न्याय हमेशा विजयी होता है।

यहाँ दोनों कहानियाँ सिर्फ़ एक मैसेज नहीं पहुँचाती है बल्कि कई मैसेज हैं जैसे कि समझदारी और धैर्य की महत्वता, गलती से हुई आदेशों के परिणाम, न्यायप्रियता का महत्व आदि। ये कहानियाँ हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करती हैं।

निष्कर्ष:

वत्स द्वादशी, बच दुआ या बछवारस (Bacch Dua Bach Baras) का उत्सव हमें याद दिलाता है कि बच्चों का समाज में महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए। इस दिन हमें उनके साथ समय बिताने, उनकी शिक्षा को प्राथमिकता देने, और उन्हें प्यार और समर्थन प्रदान करने का वचन देना चाहिए। यह उत्सव हमें परिवार के महत्व को भी याद दिलाता है, क्योंकि यह परिवार के सदस्यों के बीच आपसी समरसता का संकेत होता है।*

इस बछवारस, हम सभी को अपने बच्चों के प्रति स्नेह और सहानुभूति का प्रतिज्ञान करना चाहिए और उनके साथ खुशियों भरा समय बिताना चाहिए। वत्सपूजा के इस पवित्र उत्सव के माध्यम से हम सभी बच्चों के महत्व को समझकर उन्हें आत्मविश्वास और सामाजिक समर्थन प्रदान कर सकते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!